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प्रि॒या वो॒ नाम॑ हुवे तु॒राणा॒मा यत्तृ॒पन्म॑रुतो वावशा॒नाः ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

priyā vo nāma huve turāṇām ā yat tṛpan maruto vāvaśānāḥ ||

पद पाठ

प्रि॒या। वः॒। नाम॑। हु॒वे॒। तु॒राणा॑म्। आ। यत्। तृ॒पत्। म॒रु॒तः॒। वा॒व॒शा॒नाः ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:56» मन्त्र:10 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:23» मन्त्र:10 | मण्डल:7» अनुवाक:4» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वावशानाः) कामना करते हुए (मरुतः) प्राण के समान प्यारे विद्वानो ! (तुराणाम्) शीघ्र करनेवालों (वः) आप लोगों के (प्रिया) मनोहर (नाम) नामों को मैं (हुवे) प्रशंसता हूँ अर्थात् मैं उनकी प्रशंसा करता हूँ (यत्) जो (आ, तृपत्) अच्छे प्रकार तृप्त होता है उस का और मेरा सत्कार करो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जो सब के प्रियाचरण करने और सुख की कामना करनेवाले मनुष्य वर्त्तमान हैं, वे ही प्रिय सुखों को पाते हैं ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे वावशाना मरुतस्तुराणां वः प्रिया नामाहं हुवे यद्यः आतृपत् तं मा च यूयं सत्कुरुत ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्रिया) प्रियाणि कमनीयानि (वः) युष्माकम् (नाम) नामानि (हुवे) प्रशंसामि (तुराणाम्) सद्यःकारिणाम् (आ) (यत्) यः (तृपत्) तृप्यति (मरुतः) प्राण इव प्रिया विद्वांसः (वावशानाः) कामयमानाः ॥१०॥
भावार्थभाषाः - ये सर्वेषां प्रियाचरणाः सुखं कामयमाना मनुष्या वर्तन्ते त एव प्रियाणि सुखानि लभन्ते ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे सर्वांशी प्रेमाने वागतात व सुखाची कामना करतात त्यांनाच इच्छित सुख मिळते. ॥ १० ॥